निराश हो मन, और हो तलाश, सुकून की,
अरसा हुए खुद को, हँसते हुए, न पाया हो जब,
मन में हो बेचैनी, और हो संदेह का जलजला,
और, जब खुद से खुद को, प्रश्नों के उत्तर न मिलें,
चलो चलें उस ओर, जहाँ से रौशनी की किरण झांकती
जब साथ खड़ा साथी, दम तोड़ रहा हो,
हाथों से हाथ, लगे, अब छूट रहा हो,
मन का विश्वास, गर डगमगा रहा हो तुम्हारा,
और, जब हर तरफ, अँधेरा दिखाई दे तुम्हें,
चलो चलें उस ओर, जहाँ से रौशनी की किरण झांकती हो।
रस्ते तो हों, पर किधर को जाएँ, इसमें यकीं न हो,
अपनों से ही डरने लगें हम, और समां जाएँ खुद में,
लम्हें लगें सदियों से, और समय की गति विस्मृत हो,
और, जब डर हो हावी, खुद की अस्मिता पर, हर पल,
चलो चलें उस ओर, जहाँ से रौशनी की किरण झांकती हो।
चलें, कि रुकना इस जगह पर, जड़ हमें कर देगा,
यात्रा कठिन, लम्बी उबाऊ, हो भी सकती है मगर,
मान लें कि परिवर्तन ही सत्य मात्र शाश्वत नियम है,
और, क्या पता नव सृष्टि का नव बीज रस्ते में सृजित हो,
चलो चलें उस ओर, जहाँ से रौशनी की किरण झांकती हो।ी हो।